सत्यम नागपाल/ निष्क्रिय भारतीय
भारत में प्रवेश से ही ज्ञान विज्ञान, ध्यान और बौद्ध धर्म की भूमि बनी हुई है, लेकिन आज के निष्क्रिय भारतीयों को (भारतीय समाज) *यहां जाना मना है*, *यहां पेशाब करना मना है*, *कृपाया लाइन न तोड़े* जैसी फ्रक्स समझ के लिए आग्रह करना है जरा भी रंगीन नहीं ऐसे लोग जिन्हें देखकर पश्चिम से आया कोई भी कुत्ते का बच्चा भी बेच सकता है और ये अपनी प्रतिभा को घमंड में चूर कर शेखी बघारते हैं। अपने मन को सीमित करने को तक पर ध्यान विकास का ढिंढोरा पीटते हैं और उस पश्चिमी महिला की जो भारतीय जीवन में कृष्ण भक्ति में डूबी हुई है, उसे थकाते नहीं हैं।
अब तो यह द्वीप समूह ऐसी स्थिति है कि इस समाज की पहचान ही बन गई है क्योंकि यहां पर ईसा की भक्ति में डूबी मीरा तो पड़ोसी के घर में, अपने देश पर मिटने वाला भगत सिंह के पास पड़ोसी के घर में, ज्ञान से ओत -प्रोत लिंकन भी पड़ोसी के घर में ही हो, अपने घर में पैदा हो सिर्फ -कैसा भी हो बस पैसा हो।
फेसबुक पर ऐसे दोगले लोगों की जिंदगी को और भी आसान बना दिया है। अब महापापी व्यक्ति भी फेसबुक के माध्यम से ज्ञान की ऐसी गंगा बहता है मानो साड़ी सृष्टि अब तो इसी में शामिल होंगे पवित्र हो नामांकित। पश्चिम की इस लहर ने भारत और भारतीयता को पिछले लगभग 300 वर्षों में किस क़दर को ख़त्म कर दिया है, यह जानकारी अत्यंत आवश्यक है।
न जाने कब और कैसे यह धारणा बनी कि अंग्रेजी बोलने और पढ़ने वाले ही शिक्षित हैं अंग्रेजी न आने पर आप गवार कैसे हो गए। यह समझ से परे है कभी-कभी ऐसी कोई धारणा क्यों नहीं बनाई जाती कि हिंदी न बोलने और न समझने वाले भी पढ़ सकते हैं।
लगभग 250 वर्ष पहले भारत में अंग्रेजों का गुलाम था और आज लगभग 250 वर्ष बाद भी हर भारतीय पश्चिमी सोच और संप्रदाय का गुलाम है, हमारी आने वाली पीढियाँ, इस बात पर कभी गर्व नहीं होगा कि हम उनके पूर्वज थे क्योंकि हम उनके लिए कोई संस्कार नहीं हैं सजो सके और न संस्कृति। विरासत के बारे में विशेष रूप से हम उन्हें नेतृत्व नहीं करना चाहते हैं, बल्कि वेस्ट का, जिसका सबसे बड़ा गुण है तो हम खुद को बेहतर तरीकों से प्रशिक्षित कर सकते हैं और न ही कार्य कुशल बन सकते हैं। उस गुलामी की व्यवस्था का पता लगाने का कारण यह है कि हमें बच्चों को गुरुकुल की जगह कॉन्वेंट स्कूल में तवज्जो देना है। जहां उन्हें संस्कार और संस्कृति के स्थान पर केवल एक ही निशाने पर रखा जाना सिखाया जाता है, ऐसे में आज की पीढ़ी उन भेड़-बकरियों के झुंड की तरह हो गई है जो सर झुकाकर बस एक दूसरे का आखेट कर रहे हैं।
ओउम्
संदिग्ध भारतीय:-
अपने समाज को इस प्रकार की पहचान को अपने जत्थे जमाते हुए देखते हैं, जिसे देखने के बाद केवल गोरी चमड़ी वाले लोग या फिर ब्रह्मा में कही गई बातें ही सत्य हैं बाकी तो सब कुछ मिथ्या है।
इस सोसायटी ने आज भी दादागिरी का गुलाम बना लिया है, जो पहले आपकी ख़ुबियों को समझाता था, फिर उन्हें लेकर आपको छोटा महसूस कराता था, हीन भावना से प्रेरित होता था और आपकी दो से तीन पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से ही दूर रखता था। और फिर उन सभी ने उन सभी बातों को कहा जिन्हें अपना कहा था दुनिया भर में ईसा ने शुरू किया था और हम निष्क्रिय हो गए थे फिर से उनकी मांग- हम समझ ही नहीं पाए कि
योगा कर योगा हो गया
राम -रामा
रामायण- रामायणा हो गई थीं यह अंधधुंध युवाओं के साथ हम आपके ही देवी-देवताओं को द्धशद्वद्ग षष्ठद्गश्ह्व का सामान बनाया गया। हम यह भूल गए हैं कि हमारे आराघर मंदिर में कोई भी मंदिर नहीं है।
भारतीय परंपरा के अनुसार, हमारे शरीर और स्वास्थ्य दोनों के लिए खाना बनाना सबसे अच्छा माना जाता है, लेकिन नाइजीरिया ने हमें नीचा दिखाया, छोटा सा महसूस किया और हमारे घर में एक शानदार जगह बनाई और आज वर्तमान में जापान, कोरिया में है। न जाने कैसे ही देश इसी पद्धति से जीवन गुज़ार रहे हैं।
यूरोपीय कंपनी तो भारत से व्यापारियों को आयात कर उनकी प्लेटें अंतरराष्ट्रीय बाजार में उतारकर पैसे बना रही है।
ब्रिटेन जब भारत आया तो उन्हें यहां से सिर्फ एक पैसा नहीं मिला जो हमारे कल्चर में था। उस समय अंग्रेजी में यह बात हैरान कर देने वाली थी कि भारत में लोग ज्वाइंट फैमिलीज में रहते हैं, छोटे-बड़ों का प्यार करते हैं। लोगों में पढ़ाई की भावना होती है। धन, संपत्ति या बटवारा जैसी नीव को लेकर भी कोई प्रतिष्ठा नहीं है।
इस प्रकार की भावना को भारतीयों में देखकर अंग्रेज़ों का आश्चर्य और जलन दोनों एक साथ हो गए। धीरे-धीरे करके हमारी हर छोटी-बड़ी चीज को लेकर हमें छोटा महसूस कराएं, फिर हमारी आने वाली पीढियों को भारतीय शिक्षा पद्धति और जीवन शैली से दूर और आज 250 साल बाद हम भारतीय अपनी शिक्षा पद्धति और जीवन शैली दोनों से अनभिज्ञ पूर्णता निष्क्रिय हो गए हैं क्योंकि संस्कृति हमें पढ़नी नहीं आती और हिंदी भाषा में हमें शर्म आती है। योग करने का समय नहीं है और आयुर्वेद के समय की समाप्ति लगती है, भक्ति हमारे लिए अंधविश्वास है।/ (होम डेको स्टोर), चेतना पंवार